Wednesday, March 3, 2010

शासकीय महाविद्यालय सिहोरा उच्च श्रेणी लिपिक श्रीमान जालसाज ओ.पी. दुबे को राजनैतिक संरक्षण

प्रतिनिधि// उदय सिंह पटेल(जबलपुर // टाइम्स ऑफ क्राइम)
उल्टा चोर कोतवाल को डॉटे, इस कहावत को चरितार्थ कर दिखाया शासकीय महाविद्यालय सिहोरा के ओम प्रकाश उर्फ ओ.पी.दुबे, उच्चश्रेणी लिपिक ने। इस कहानी के जानकार शासकीय कला महाविद्यालय पनागर जिला जबलपुर में कार्यरत एक कर्मचारी ने ''टाइम्स ऑफ क्राइमÓÓ को लिखित जानकारी में बताया कि, घटना वर्ष 1999 की है। उस समय आरोपी ओ.पी. दुबे उच्च श्रेणी लिपिक के पद पर शासकीय कला महाविद्यालय पनागर में पदस्थ था। और उस समय उसके पास कैश का भी प्रभार था। जानकारी में बताया गया है, कि आरोपी ओमप्रकाश उर्फ ओ.पी. दुबे की नियत खराब हो गई और उसने अपनी प्लानिंग अनुसार गंभीर अपराध करने की ठान कर दस्तावेजों में हेराफेरी की और 58,357=85 (अन्ठानवन हजार, तीन सौ सन्तावन रूपये पच्चयासी पैसे) नगद राशि का गबन किया और लम्बे अवकाश पर वहां से भाग गया। जिसकी विभागीय जांच अभी भी चल रही है। अत: उक्त घटना के संदर्भ में सिहोरा ''टाइम्स ऑफ क्राइम'' ने विगत 14 जनवरी 2010 को छापकर प्रकरण के आरोपी ओ.पी. दुबे उच्च श्रेणी लिपिक की पोल खोल दी जिस कारण आरोपी बुरा मान गया और उसने गुस्से से भगड़ कर क्राइम रिपोर्टर को जेल भिजवाने की धमकी दी और म.प्र. हाईकोर्ट के वकील के माध्यम से धमकी भरा नोटिस भेजकर क्राइम रिपोर्टर को डराया धमकाया उल्लेखनीय है। कि उक्त घटना की रिपोर्ट लिखाने शासकीय कला महाविद्यालय पनागर की प्राचार्य स्व. श्रीमती कीर्ति गुरू पुलिस थाना पनागर गई थी। किन्तु आरोपी ओ.पी. दुबे के भाई सहायक पुलिस उपनिरीक्षक के दबाव के कारण आरोपी के खिलाफ पनागर पुलिस ने उनकी रिपोर्ट नहीं लिखी। जानकारी में आगे बताया गया है। कि मजबूरन प्राचार्य श्रीमती गुरू ने घटना की शिकायत पुलिस अधीक्षक जबलपुर तथा आयुक्त उच्च शिक्षा म.प्र. शासन भोपाल को रजिस्टर्ड डाक से प्रेषित की थी। ज्ञात हो कि पुलिस अधीक्षक जबलपुर को भेजी गई शिकायत पर पनागर पुलिस ने घटना को गंभीरता से नहीं लिया केवल कागजी खाना पूर्ति कर मामले का खात्मा कर दाखिल दफ्तर कर दिया। बात आश्चर्य की है, कि शासकीय कला महाविद्यालय पनागर के कैश प्रभारी ने 58,357=85 नगद राशि का गबन किया और पनागर पुलिस ने आरोपी के खिलाफ मामला दर्ज नहीं किया इस बात से जाहिर है आरोपी ऊंची पहुंच वाला व्यक्ति है। उल्लेखनीय है कि शिकायत पर विभागीय जांच पर आयुक्त उच्चशिक्षा म.प्र. शासन भोपाल ने आरोपी ओ.पी. दुबे उगा श्रेणी लिपिक को घटना का दोषी माना है और विगत 6 दिसम्बर 2008 को पदच्युत करने का आदेश पारित किया। किन्तु आरोपी ने उक्त आदेश के खिलाफ ऊंची छलांग लगाई और डॉ. महेन्द्र सिंह रघुवंशी उपसचिव उच्चशिक्षा विभाग के दरबार में पहुंच कर आयुक्त द्वारा पारित आदेश दिनांक 6 दिसंबर 2008 निरस्त करा लिया और सत्यवादी हरिश्चंद बन गया उल्लेखनीय है कि घटना के संदर्भ में ''टाइम्स ऑफ क्राइमÓÓ ने प्राचार्य शासकीय महाविद्यालय सिहोरा से संपर्क किया तब चर्चा के दौरान उन्होंने बताया कि आरोपी ओ.पी.दुबे चार्ज के लिये उन पर भारी दवाब डालता है और उन्हें धमकाता है। ''टाइम्स ऑफ क्राइमÓÓ के पूंछने पर कि क्या.? आरोपी ओ.पी. दुबे उच्चश्रेणी लिपिक, अल्प वेतन भोगी कर्मचारी की श्रेणी में आता है, इस सवाल पर प्राचार्य ने अपने जवाब में कहा कि आरोपी दुबे उच्चश्रेणी लिपिक हैं, जो अच्छे वेतनमान की श्रेणी में आता है। आरोपी दुबे अल्प वेतन भोगी कर्मचारी की श्रेणी में नहीं आता। घटना के जानकारों का मानना है, कि डॉक्टर श्री रघुवंशी उप सचिव उच्चशिक्षा विभाग मंत्रालय ने आरोपी ओ.पी. दुबे उच्च श्रेणी लिपिक को अल्प वेतन भोगी कर्मचारी माना है। जो नियम तथा कानून के विपरीत हैं। इस प्रकार अपने आदेश में प्राचार्य श्रीमती गुरू के द्वारा पनागर थाने में घटना की रिपोर्ट दर्ज कराने की बात कही गई है। जबकि पुलिस थाना पनागर ने उक्त घटना की रिपोर्ट नहीं लिखी। इसलिये उप सचिव उच्चशिक्षा विभाग मंत्रालय द्वारा पारित आदेश दिनांक-2 दिवसंबर 2009 त्रुटि पूर्ण एवं संदिग्ध माना जा रहा है आरोपी अपना सौभाग्य ही समझे कि उसके भाई सहायक पुलिस उपनिरीक्षक जिसने अपनी वर्दी का दुरूपयोग किया और पनागर पुलिस पर अनुचित दबाव डालकर प्रकरण को प्रभावित कर आरोपी ओ.पी. दुबे को पुलिस के चंगुल से छुड़ाया। उक्त घटना की लिखित जानकारी, तथा आयुक्त उच्चशिक्षा संचालनालय भोपाल एवं उपसचिव उगा शिक्षा विभाग मंत्रालय के आदेशों की प्राप्त फोटो कॉपी के आधार पर विगत 14 जनवरी 2010 को आरोपी ओ.पी. दुबे के विरोध में प्रथम प्रकाशन किया गया था, सिहोरा ''टाइम्स ऑफ क्राइमÓÓ रिपोर्टर का आरोपी ओ.पी. दुबे उच्च श्रेणी लिपिक की मानहानी करने का कतई इरादा नहीं था। और न ही उसका किसी से कोई लेना देना है। नगर में चर्चा है कि आरोपी अपने आपको धन बल से सम्पन्न ऊंची हस्ती मानता है, उसका दावा है कि उस पर लगाये गये आरोप को साम-दाम दण्ड भेद की नीति से समाप्त करवा लेगा। इस प्रकरण के संदर्भ में मध्यप्रदेश श्रमजीवी पत्रकार संघ सिहोरा इकाई ने प्रदेश शासन के मुखिया मुख्यमंत्री श्री चौहान से प्रकरण में हस्तक्षेप कर आरोपी के खिलाफ चल रही विभागीय जांच के अंतिम निराकरण तक आरोपी दुबे को सस्पेंड करने तथा उक्त संपूर्ण घटना की जांच पुलिस के माध्यम से कराने की मांग की है वरना आन्दोलन किया जा सकता है।

म.प्र. स्वास्थ्य विभाग के कुख्यात लुटेरे


भोपाल // विनय जी. डेविड (टाइम्स ऑफ क्राइम) mo. 9893221036

घपलेबाजों के घपलेबाज, घोटालों के महानायक कहें तो भी इन भ्रष्टाचारियों को कम पड़ेगा। इन भ्रष्टाचारी दरिन्दों ने जो किया वह किसी स्तर से भी इनको बख्शने के काबिल नहीं है। पिछले कई सालों से इस स्वास्थ्य विभाग में जितने भी संचालक आये उनने विभाग को अपने बाप की बपौती समझ कर नोंच-नोंच कर खा गये। देश में शिवराज सरकार को जो सुनना सहना पड़ा है, शायद वो उनकी जिन्दगी का सपना ही होगा, परन्तु इन घोषित मगरमच्छों ने तो प्रदेश कि उन जनता का खून चुस लिया जिनको खून चढ़ाने की आवश्यकता थी। विभाग के सर्वश्री घपलेबाज डॉ. योगी राज शर्मा, कमिश्नर राजेश राजौरा और उस पर पनौती डॉ. अशोक शर्मा ने जो किया उसका परिणाम सीधे इनको जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाना ही है। इनके घिनौने कृत्य ने देश में मध्यप्रदेश को भ्रष्टाचार की श्रेणी में प्रथम पायदान पर पहुंचा दिया है। इन रूपयों के हवसखोरों की भूख इतनी है कि ये अगर अपने पदों पर रहे तो पूरा प्रदेश बिमारू राज्य के पायदान पर में प्रथम होगा। इन नियुक्त लुटेरों ने दुआ नहीं प्रदेश के मरीजों की हाय का भण्डार बटोरा है जिन्हें कई बिमारियों के चलते दवाओं की आवश्यकता थी। जहां वो मौत से लड़ रहे थे उनको दवायें नहीं मिली, जबकि पूरे प्रदेश के उन गरीबों की जीवन स्वास्थ्य के साथ खेला है जो शासकीय दवाईंयों के सहारे अपना इलाज करवाने को मजबूर हैं। जो मौत के सामने बजट के अभाव में जीवन से हार गये। बजट की कही कमी नहीं थी। परन्तु विभाग में बैठे नासूरों ने इसे अपनी भूख मिटाने के लिये चीर फाड़ कर अनेकों बार बलात्कार किया है। इस ओछी हरकतों ने शिवराज सिंह चौहान की अच्छी खासी थू-थू करवाई है, परन्तु अपनी लाज शर्म के मारे वे कहें तो क्या कहें। पूरा का पूरा विधानसभा सत्र भ्रष्टाचार कि चित्कार से गंूज रहा है। जवाब देना, सामना करने को कुछ रहा नहीं मात्र समय पास करना इस भा.ज.पा. संचालित सरकार की हो गई है। ग्लूकोज में चल रही भ्रष्टाचारी संरक्षण सरकार चाहे जितना चाह ले इनको बचाकर रखने की परन्तु एक दिन तय है कि ये नासूर कैन्सर बन कर इनके जीवन की इललीला समाप्त कर देगा। भोले-भाले शिवराज इनकी तिगड़ी एवं प्रदेश की ए.आई.एस. लाबी के आगे नस्मस्तक हैं जो इस बात को संकेत देता है कि हमारा प्रदेश का मुख्यमंत्री काफी कमजोर है। अरे मुंह की फकर-फकर तो हर सूरमा भोपाली कर लेता है, अगर वाकई प्रशासनिक दर्द है, तो इन घोटालेबाजों को बर्खास्त कर इनकी समस्त संपत्ति जब्त कर पिछले तीन पीढिय़ों का हिसाब ले लेना चाहिये। आखिर इन तयशुदा लुटेरों ने पूर्ण संपत्ति कैसे आर्जित की है। क्यों इन भ्रष्टाचारियों के पीछे अपनी छी-छी लीदड़ करते फिर रहे हैं। ऐसी सटीक कार्यवाही करना चाहिये जिससे इन भ्रष्टाचारी रावणों की सात पीढ़ी भी दण्डनीय व्यवस्था में गंजी उत्पन्न हों। घोटालेबाजी अच्छी होती है उसके सुख अच्छे होते हैं। लेकिन परिणाम जेल की सलाखे ही होती है। कानून इतना अभी कमजोर नहीं की इन दानवों के आगे नापुंशक नजर आये। बात तो वक्त की है और बिकाऊ व्यवस्था की जो अपनी बुज़दीली के आगे अपने घुटने टेक दे। भ्रष्टाचार के आगे अगर शिवराज सिंह चौहान झुक रहें हैं तो हमारी सलाह है उनको इतने भ्रष्टाचार के आगे अपना श्वेतपत्र हथियार डाल देना चाहिये। अगर नहीं तो मर्दों की भान्ति कानूनी परिक्रमा में इन चौट्टों को अपनी कामचोरी का फायदा उठाने का सबक जरूर देना चाहिये ये तो छोटी लड़ाई है गांधी जी ने तो देश से अंग्रेजों को भगाया था ये तो मात्र विभागीय लुटेरे हैं। अगर इनके आगे नस्मस्तक हो गये तो अनेकों विभाग हैं जिसके महायोद्धा आपको धूल चटा देगें।आखिर क्यों नहीं होती समय रहते कार्यवाहीइन भस्मासूरों पर कार्यवाही करने, ना करने के पीछे सरकार की दवाबी राजनीति होती है, पीछे से माल बटोरने की। और शिकायतों को दबा-दबा कर मुद्दों की हवा निकलने की रणनीति काम करती है। अधिकारी वर्ग एक दूसरे से जब तक खुन्दक ना हो, तब तक कोई कार्यवाही नहीं करते। यहां पर घोटालेबाज एक दूसरे को अपना घोटालेभाई मानते हैं। जब मुद्दा सार्वजनिक हो जाता है, जो जांच और टाला मटोली के शब्दबाण चलते हैं, परन्तु सालों में जांचे पूरी नहीं होती। अब हमारे इन घोटालेबाजों की ही शिकायतें लें लेते तो सारा माजरा कई सालों पहले खुल जाता, श्रीमान डाक्टर भ्रष्टाचारी महोदय योगीराज के तो काले कारनामों की तो काफी लम्बी चौड़ी लिस्ट है, अनेकों बार इनके घपले समाचार पत्रों, मैग्जिनों में चिघांड़ रहे थे, परन्तु आंख की अंधी, कान की बहरी प्रशासनिक लाबी कुंभकरण निकली, प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज को भी कई शिकायतें दी गई परन्तु ना जाने कौन सी मजबूरी रही कि वे भी पूर्ण स्वास्थ्य मंत्री के साथ स्प्रिंग गर्दन वाले गुड्डे के जैसे सिर हिलाते रहे और इनको मूक सहमति दे दी। कार्यवाही अब की तो क्यों घोटाले की हद पार हो गई, करोड़ों का बजट ये लुटेरे लुट गये, अपनी बीबी, बच्चों को खूब खिला-पिला कर मुस्टंडा बना दिया, अब क्या है कार्यवाही करो न करो।भ्रष्टाचारों पर लगामसरकार को चाहिये की सभी बजट ऑन लाईन कर दें वही आय-व्यय की पूर्ण जानकारी एक क्लिक पर सार्वजनिक हो पूरा खर्चा वितरण नाम सहित शो कर देना चाहिये, जब सब खुला रहेगा तो अनेकों नजर पड़ेगी जल्दी घपला पकड़ा जायेगा और पोल खुल जायेगी, ऐसे कई और तरीके हैं जिससे भ्रष्टाचारों पर लगाम लगाई जा सकती

यूनिक रिपोर्टर के संपादक पर धोखाधड़ी का आरोप २० लाख ऐंठे

ब्यूरों प्रमुख// सुरिन्दर सिंह अरोरा(होशंगाबाद ेटाइम्स ऑफ क्राइम)

साप्ताहिक समाचार पत्र यूनिक रिपोर्टर के संपादक एवं अपने आप को पायनियर दैनिक अंग्रेजी समाचार पत्र के मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ का ब्यूरो बताने वाले होशंगाबाद निवासी मनीष मिश्रा पर जिले के विभिन्न ग्रामों से आए लगभग दो दर्जन से अधिक युवकों ने धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए पुलिस अधीक्षक को शिकायत की है। शिकायत में युवकों ने बताया कि उक्त व्यक्ति द्वारा हम लोगों को नौकरी दिलाने के नाम पर हमसे पैसा लिया गया और कुछ लोगों को फर्जी नियुक्ति पत्र व प्रेस के परिचय पत्र दिए गए। परेशान युवकों द्वारा जब अपने पैसे वापिस मांगे तो मनीष मिश्रा द्वारा जान से मारने की धमकी और झूठे प्रकरण में फंसाने की धमकी दी गई। अपने आप को आईजी, डीआईजी और कलेक्टर से पहचान रखने वाला बताते हुए कहता है कि मेरा कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। सिवनीमालवा तहसील से आए लगभग दो दर्जन युवकों ने एक शिकायती पत्र के माध्यम से एसपी रूचि वर्धन को बताया कि अपने आप को साप्ताहिक यूनिक रिपोर्टर समाचार पत्र का संपादक बताने वाले होशंगाबाद निवासी मनीष मिश्रा द्वारा हम लोगों यूनिक रिपोर्टर में नौकरी दिलाने के नाम पर किसी से 40 हजार रूपए, किसी से 1 लाख रूपए, किसी से 1.5 लाख रूपए लेकर प्रेस के कार्ड व प्रेस में नियुक्ति आदेश की प्रति दी गई। जब हम नियुक्ति आदेश की प्रति लेकर संबंधित कार्यालय में पहुंचे तो बताया गया कि यहां से किसी प्रकार का नौकरी के लिए विज्ञापन नहीं दिया गया है। युवकों ने एसपी को बताया कि मनीष मिश्रा द्वारा धोखाधड़ी कर हम बेरोजगार युवकों से लगभग 20 लाख रूपए नौकरी दिलाने के नाम पर लिए।ठगे गए युवकों जिनमें कैलाश, पूनम सिंह, मंगल सिंह, रामनिवास, बहादुर सिंह, प्रहलाद मालवीय, मुरारी, मोहन सिंह, रामस्वरूप, संदीप, आनंद, राजेन्द्र लोवंशी, सुरेन्द्र लोवंशी, संदीप लोवंशी, इंदर सिंह, कमल सिंह, ओमप्रकाश, सुनीता, पवन, जितेन्द्र, मुकेश कुमार आदि युवकों ने बताया कि जब हम अपना पैसा वापिस लेने मनीष मिश्रा से मिले तो उसने कुछ लोगों को चैक द्वारा पैसे लौटाए लेकिन खाते में पैसा न होने से चैक अनादरित हो गए। दोबारा मनीष से पैसों की मांग करने पर मनीष द्वारा कुछ लोगों को झूठे प्रकरण में फसाने व कुछ लोगों को जान से मारने की धमकी दी गई। युवकों ने पुलिस अधीक्षक से न्याय की मांग करते हुए मनीष के खिलाफ कार्यवाही करने हेतु शिकायती पत्र की प्रतियां प्रदेश के मुखिया को भी भेजी हैं। उल्लेखनीय है कि वर्तमान में जिले में फर्जी पत्रकारों की बाढ़ से आ गई है जिससे अधिकारी, कर्मचारी, व्यापारी सहित आमजन भी परेशान है। जिला जनसंपर्क अधिकारी श्री एचके बाथरी ने नगर में आने वाले समाचार पत्रों के संवाददाताओं से परिचय पत्र जमा करने को कहा है। इसके साथ ही जिला जनसंपर्क कार्यालय द्वारा समाचार पत्रों के संपादकों से उनके द्वारा नियुक्त किए गए संवाददाताओं की जानकारी चाही है। चब्यूरों प्रमुख से सम्पर्क : 99939 93300